Tuesday, February 1, 2011

साईं परिवार शालीमार गार्डन की प्रथम शिर्डी यात्रा

ॐ साईराम, बाबा जिसको याद करें वो लोग निराले होते हैं / जिनका बुलावा शिर्डी से आये वो किस्मतवाले होते हैं. श्रीसाईंसंगम सेवाभावी संस्था से आदरणीय श्री संदीप भाऊ सोनावने ने साईं परिवार शालीमार गार्डन के अध्यक्ष श्री आकाश शर्मा जी को तीस जनवरी 2011 की शाम भव्य साईं भजन संध्या के आयोजन में शामिल होने का निमंत्रण दिया. शिर्डी की पावन भूमि पर आयोजित होनेवाले इस विराट आयोजन में शामिल होना एक साईं भक्त के लिए बहुत ही शुभ संकेत था. आइये इसी यात्रा का आरम्भ श्रीसाईं की कृपा से आरम्भ करते हैं. मेरी पूरी कोशिश है की मैं आपको इस यात्रा का आँखों देखा हाल सुनाऊ बाकि होइए वही जो साईं रची रखा...

आकाश शर्मा जी के बस इतना कहने पर की संदीप भाऊ का निमंत्रण है की हम शिर्डी में साईं भजन संध्या में भाग लें हमारे मन में शिर्डी जाने की उमंग बढ़ने लगी. द्वारकामाई के फूलो को खुशबु, शिर्डी की गलियों का प्यार और धूनीमाई की गर्मी महसूस होने लगी. प्रोग्राम निश्चित था और बहुत सारी छुट्टिया मिलने की कोई संभावना दिखाई नहीं पड़ रही थी. बाबा के आशीर्वाद से तीन अमूल्य दिन मिल गए मगर बाबा के पास जाना हो और जाने-आने को मिलकर सिर्फ तीन दिन हों तो यात्रा का उत्साह कुछ कम हो जाता है. मुझे नहीं पता आपको चलना ही है चाहे तो हम सब भी सिर्फ तीन दिन का ही प्रोग्राम बना लेंगे, आकाश जी के इन शब्दों ने बाबा से मिलने की आस को बुझने नहीं दिया. फैसला तो हो गया मगर क्या ट्रेन में टिकट मिलेगी? सुधीर शर्मा जी ने ट्रेन के आरक्षण स्थिति देखि और टिकेट करवा दिए, जाने की दो आरऐसी और तीन वेटिंग तो वापसी की पांचो वेटिंग. वक़्त गुज़रता जा रहा था और हमारा सारा ध्यान टिकेट की स्थिति की तरफ होने लगा. बाबा की कृपा से छब्बीस जनवरी तक जाने की पांचो आरऐसी मगर आने की वही वेटिंग रही. सुधीर भईया ने फैसला किया कि हम उनतीस तारिख को आने कि टिकेट 'तत्काल' में लेंगे. जैसा सोचा वही किया उनतीस तारिख को अमृतसर-नांदेड एक्सप्रेस में जाने की पांच आरऐसी और कर्नाटक एक्सप्रेस से आने की छेह टिकेट कन्फिर्म मिल गयी. बहुत अच्छा पूछा कि जाने कि पांच तो आने छेह कैसे? नहीं बाबा हमारे साथ नहीं आ सके क्यूंकि वो तो पहले ही हमारे दिलो में हैं. हमारे एक सदस्य श्री नारायण अग्रवाल जी ने हमारे साथ जाने की इच्छा व्यक्त की और बाबा ने साथ ही साथ आकाश भईया का थाईलैंड का ओफ़िशिअल ट्रिप बनवा दिया. आकाश जी ने फैसला किया की वो दिल्ली से थाईलैंड, थाईलैंड से मुंबई और वहां से शिर्डी आयेंगे. दिल्ली वापसी वो हमारे साथ ही करेंगे, इस लिए जाते समय नारायण भाई आकाश जी के टिकेट पर गए और आते वक़्त हमारे सबके टिकेट थे. उफ़ आपको जाने वाले सब साथियों से तो मिलवाया ही नहीं. श्रीउमाशंकर पाण्डेय अंकल, श्री आकाश शर्मा जी, श्री सुधीर शर्मा जी, श्री रोमिल अग्रवाल जी, श्री नारायण अग्रवाल जी और ... और मैं.

उनतीस तारिख को दोपहर की गुनगुनी ठण्ड में हम पांच भाई श्रीसाईं से मिलने की उम्मीद लिए घर से निकले और दिल्ली मेट्रो से नयी दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे. ट्रेन के आने वक़्त था और वहां हमारी भेंट श्रीसाईं सुमिरन टाइम्स समाचार पत्र की संपादिका अंजू टंडन जी से हुयी, वो भी इसी साईं संध्या के लिए शिर्डी जा रही थी. बाबा के लिए चलने वाली यात्रा कि शुरुआत अगर साईं प्रचार में समर्पित साईं भक्त से हो जाए तो साईं का आशीर्वाद ही तो कहेंगे. ट्रेन में जब हम अपनी जगह ले चुके थे तब हमने श्रीसाईं को धन्यवाद किया और यकीन जानिए हमारा आने वाला समय बहुत उल्लास से गुजरने वाला था.

हम पांच और बर्थ ढाई क्यूंकि आरऐसी में दो जानो को एक बर्थ मिलती है. तुगलकाबाद स्टेशन पर शुरू हुआ श्रीसाईं के भजनों का कार्यक्रम. उमाशंकर पाण्डेय अंकल के 'मंगलदीप जलाओ हमारे घर आओ गजानन' से इस कीर्तन की शुरुआत हुयी और आगरा तक हमने एक के बाद एक कई भजन गाये. हमारा पूरा कोच नांदेड जा रहे गुरु भक्त सिक्खों का था जिन्होंने हमारे साईं भजनों का पूरा आनंद लिया और हमे गुरु महाराज के लंगर का. यहाँ ऐसा लग रहा था कि जैसे बाबा खुद हमारे साथ हैं और भजन के साथ वो भी लंगर का आनंद ले रहे हैं. रात को लंगर छक कर हम अपनी-अपनी बर्थो पर लेट गए मगर चुहुलबाजी और हंसी-मज़ाक का दौर था की ख़तम ही नहीं हो रहा था.

मैंने नारायण भाई से पूछा "आप बताओ साईं सत्चरित्र में सबसे पहले किस व्यक्ति का नाम आता है?" तो नारायण भाई का जवाब था "मैं तो दूसरी बार शिर्डी जा रहा हूँ." ये एक जवाब आज भी हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आता है जैसे आपके चेहरे पर. नारायण भाई के अनुसार पहली बार वो शादी के बाद शिर्डी गए थे और ये उनकी दूसरी शिर्डी यात्रा थी. मैंने सवाल फिर पूछा तो उन्होंने कहा 'साईबाबा'. मैंने सवाल को संशोधित किया मगर छोडिये जवाब तो मुझे ही देना पड़ा मगर नारायण जी ने जवाब ने हमारे चेहरों में सदा के लिए मुस्कराहट बिखेर दी. इसके बाद बाते करते-करते हम सब सोने कि कोशिश में रात भर जागते रहे. हालाँकि रोमिल अग्रवाल जी के अनुसार हम सब बहुत भयानक खर्राटो के साथ सो रहे थे.

सुबह उठने के साथ ही रोमिल भईया ने चीकू और पपीते का भोग लगवाया. जी बिलकुल ! मुझे फल पसंद नहीं हैं मगर उन्होंने कहा की ये तो बाबा का प्रसाद है इसलिए खाना ही पड़ेगा. तो हम पांचो ने मिलकर उस ढाई किलो के पपीते हो जय साईराम किया. एक बार फिर रोमिल भईया ने ललकार लगायी कि कीर्तन शुरू करते हैं. तो एक बार फिर डायरिया निकली, ढोलक-मंजीरा निकला और साईं नाम का कीर्तन शुरू हो गया. समय ने शायद हमारे मन की बात को समझा और भागते-भागते हमें मनमाड पहुंचा दिया. मनमाड से हम मध्यान्ह आरती के ख़त्म होने तक शिर्डी पहुँच गए. इस बीच आकाश भईया भी मुंबई से कार लेकर 'साईं सहवास' होटल पहुँच चुके थे. इसके बाद हमारा प्रोग्राम सीधे शनि महाराज के चरणों में शनि-शिंगनापुर जाने का था. श्रीसाईं के पास मुखदर्शन से हाजरी लगाकर हम शनिदेव के धाम शिन्गनापुर की और निकल गए. यहाँ से वापसी करीब रात आठ बजे हुयी और फिर जल्दी से तैयार होकर हम श्रीसाईं भजन संध्या में हजारी लगाने पहुंचे.

दिल्ली के साईं भजन गायक पंकज राज जी तब तक हजारी लगा चुके थे और मुंबई से सुप्रसिद्ध स्वर कोकिला ऋचा शर्मा हाजरी लगाने वाली थी. श्रीसाईं चरणों में शीश झुकाकर, संदीप भाऊ सोनावने और साईंसंगम सेवाभावी संस्था को उनके प्यार भरे निमंत्रण के लिए धन्यवाद देकर हमने उस विशाल और भव्य पंडाल में अपना स्थान लिया. एक और श्रीसाईं का विराट स्वरुप गुलाबी सज्जा से साथ मंच पर था और वहीँ श्री साईं चरणों में स्वर कोकिला ऋचा शर्मा जी ने साईं गुणगान शुरू किया. 'शिर्डी से लेकर जो आई रखना संग विभूति' और राग बिलावल में निबद्ध छाप तिलक सब छीनी जैसे सुन्दर भजनों से श्रीसाईं संध्या को आगे बढाया. ऋचा जी बाद दिल्ली के साईं स्वर साधक शैलभ बंसल और शिर्डी के प्यारे परस जैन जी ने बाबा के चरणों में हाजरी लगायी.

श्रीसाईं संध्या की पूर्णाहुति होने पर हमने बाबा से विदा ली और आ गए द्वारकामाई की शरण में. रात के एक बजे हम द्वारकामाई में श्रीसाईं के सामने बैठे थे और बाबा को अनुभव कर रहे थे. बाबा के साथ लगभग एक घंटा बिताकर हम द्वारकामाई के सामने फोटो खींचने लगे. हम सब छ: जानो को देखकर कोई भी कह सकता था की साईं के बच्चे साईं के पास आकर कितने खुश हैं. रात के ढाई बजे तक हम वहीँ बाबा की बातें और फोटो खीचने का कार्यक्रम करते रहे. फिर आकाश भईया के निर्देशानुसार हम होटल पर वापस आये और फिर हमने श्रीसाईनाथ की काकड़ आरती में बाबा से भेंट करी. वहीँ बाबा के परमभक्त आदरणीय श्रीनीरज कुमार जी, भाई राहुल छाबड़ा जी, साईंलीला टाइम्स समाचार पत्र की संपादिका पूनम चांदना जी, भाई शैलभ बंसल जी आदि साईं भक्तो से भेंट हुयी.

काकड़ आरती के बाद मैंने सुधीर भईया, जो पहली बार शिर्डी आये थे, और बाकि सभी भाइयो को समाधि मंदिर परिसर से जुड़े विभिन्न दिव्य स्थानों के विषय में जानकारी देते हुए सबकी हाज़री लगवाई और साथ ही साथ खुद भी बाबा के इन दिव्य स्थानों का दर्शन किया. समाधि मंदिर परिसर से बाहर आने पर अचानक रोमिल भईया को विचार आया कि हमारे किसी के भी चन्दन का तिलक नहीं लगा है तो विचार आया कि वही से चन्दन लेकर तिलक कर देते हैं. रोमिल भईया को हम साईं परिवार शालीमार गार्डन का हनुमान भी कहते हैं. उन्होंने वहीँ से चन्दन लिया चाय वाले से कप लेकर तिलक तैयार किया और हमारे साथ-साथ वहां करीब हज़ार-पंद्रह सौ साईं भक्तो को चंदन का तिलक लगाया. द्वारकामाई, चावडी, साईं बिजनस काम्प्लेक्स के आस-पास सभी साईं भक्तो को चन्दन का तिलक लगा दिया. बहुत से साईं भक्तो ने धन्यवाद दिया और यही हमारे परिवार के लिए आशीर्वाद है.

इतने छोटे से अन्तराल में बाबा से भेंट करने का जो सुख मिला वो मैं बताने और लिखने में असमर्थ हूँ मगर मेरे आनंद को आप समझ सकते हैं अगर आप शिर्डी गए हैं. अगर आप शिर्डी नहीं गए हैं तो बाबा से मेरी प्रार्थना है कि आपको भी इस आनंद की अनुभूति करायें. दोपहर करीब एक बजे हमने बाबा के मुखदर्शन से जाने की आज्ञा मांगी और वापस मनमाड की और चल पड़े. ट्रेन में लगभग आधा घंटा बैठने के बाद हम सब करीब दो घंटे के लिए सो गए. शाम को एक बार फिर साईं गुणगान का आयोजन हुआ और वहां हमारे भजनों का साथ देने के लिए बहुत सारे भक्त एकत्र हो गए. दीवाना तेरा आया, हम बाबा वाले हैं, पवनसुत विनती बारम्बार, तेरी महिमा सुनी अपार, साईं तेरे ही भरोसे मेरा परिवार है और भी बहुत से भजनों के साथ करीब दस बजे हमने छोटी आरती कर के बाबा का धन्यवाद किया और साईं चर्चा करते हुए करीब बारह बजे सोये.

सुबह श्रीसाईं संध्या और साईं परिवार शालीमार गार्डन की इस प्रथम शिर्डी यात्रा के बारे में बात करते-करते हमारा स्टेशन हजरत निजामुद्दीन आ गया और बाबा को अपनी यादो में संजोय हम यही विचार कर रहे थे की "शिर्डी छोड़ के वापस जब मैं अपने शहर को आता हूँ / क्या बतलाऊ बाबा खुद को कितना बेबस पाता हूँ". इस शिर्डी यात्रा, भव्य साईं भजन संध्या में निमंत्रण देने और शिर्डी में अतिसुन्दर व्यवस्था करने के लिए साईं परिवार शालीमार गार्डन, साईंसंगम सेवाभावी संस्था और आदरणीय श्री संदीप भाऊ सोनावने का हार्दिक आभार व्यक्त करता है और श्रीसाईं से प्रार्थना करता है की बाबा और बाबा के भक्तो के प्रति जो प्यार है वो बना रहे. अगली शिर्डी यात्रा वृतांत तक के लिए जय साईं राम...

Sunday, December 20, 2009

Introduction

We all are passed out from Harcourt Butler Sr. Sec. School, Mandir Marg, New Delhi, India. Our school had a great history and historical alumni. This blog is just share and remember those memories which are still fresh and we don't want to say 'Old Memories'. We don't like to discuss the management team because we all are share holder of this FUN CLUB. 'The Butlerians' is a tag which we all students of our school got. Rest is up to you. You have to write your memories and ofcourse you can write down the 'nick names' of your teachers with all the dignity and respect.